डॉ प्रमोद कुमार शर्मा एक ऐसे सामाजिक चिंतक, समाजिक पैरोकार जिसने निस्वार्थ भावना से प्रकृति को सजाने-संवारने में अपनी उम्र की लगभग आधी से ज्यादा अवधि पार कर ली है मगर इसके बावजूद भी यह अभी न थके हैं, न ही रुके हैं.
सहारनपुर के निवासी डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा पेशे से शिक्षक रहे हैं, काफी लंबे समय तक शिक्षण कार्य में संलग्न डॉ. प्रमोद कुमार शर्मा कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर और भूगोल विभाग के अध्यक्ष के पद पर भी आसीन रहे हैं. इस दौरान उन्होंने काफी शोध कार्य भी किए हैं.
एक पर्यावरणविद होने के नाते डॉक्टर प्रमोद कुमार शर्मा विभिन्न सामाजिक संगठनों से जुड़े हुए हैं-
राष्ट्रीय जल बिरादरी के संयोजक हैं, तो पर्यावरण पहरी के सदस्य, पांवधोई बचाओ समिति के उपसचिव हैं, तो दूसरी ओर सीनियर सिटीजन वेलफेयर सोसायटी के कार्यकारिणी सदस्य भी. यही नहीं हाल ही में स्मार्ट सिटी परियोजना में भी इन्होंने सलाहकार के तौर पर कार्य किया है. जी हां, एक साथ इतने सारे संगठन में इनकी भागीदारी है, मगर यह यहीं नहीं रुकते, अभी हाल ही में निर्मल हिंडन अभियान के तहत मेरठ मंडल के मंडलायुक्त डॉ. प्रभात कुमार द्वारा बनाई गई समिति के चुनिंदा सदस्यों में इनका भी एक नाम है.
यदि आप सोच रहे हैं कि यह सिर्फ नाम भर के लिए इन संगठनों से जुड़े हैं तो आपकी यह गलतफहमी ही होगी. एक साथ इन सभी जिम्मेदारियों का निर्वहन इन्हें बखूबी आता है. ऊपर जितने भी संगठनों के बारे में बताया गया है, उनमें वह सिर्फ नाम के लिए नहीं है बल्कि इन सभी में यह बेहद सक्रिय तौर पर जुड़कर कार्य कर रहे हैं.
इन सभी संगठनों में से ज्यादातर का उद्देश्य है कि जल, जल संरचनाओं और नदियों को संरक्षित करना और इनमें जनसहभागिता को भी सुनिश्चित करना.
डॉ प्रमोद कुमार शर्मा के जीवन का लक्ष्य पर्यावरण, संरक्षण, संवर्धन है, इसलिए उनके सामने कार्य करते हुए काफी समस्याएं आई. लोगों की धमकियां भी मिली मगर यह डरे नहीं, कभी रुके नहीं. अपने इसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए इन्होंने सहारनपुर में बायो मेडिकल वेस्ट के लिए काफी लंबा संघर्ष किया. एक समय था जब सहारनपुर में नर्सिंग होम अनियंत्रित तरीके से अपने बायोमेडिकल वेस्ट को बाहर ही डाल दिया करते थे मगर अपने प्रयास से डॉ प्रमोद जी ने सहारनपुर में नर्सिंग होम के बायो मेडिकल कलेक्शन को सुनिश्चित किया है. साथ ही सहारनपुर में जंगल की लकड़ियों को जलाकर कोयला बनाने का कार्य किया जाता था, जो कि पर्यावरण के लिए काफी नुकसानदायक था. ऐसे में प्रमोद जी ने फिर से एक बार बीड़ा उठाया और हाईकोर्ट तक चली इस लड़ाई में सफलता प्राप्त की और इसे बंद करवाया.

सहारनपुर में बहने वाली पांवधोई नदी में कई घरों से सीधे तौर पर शौच और मल का असंशोधित वेस्ट बहाया जाता था, इसे रोकने में भी डॉक्टर साहब का बहुत बड़ा हाथ है. अपने प्रयासों द्वारा इन्होंने सरकारी माध्यम से एक सस्ते मॉडल सोकपिट का निर्माण करवाया, जिससे सीधे तौर पर शौच का नदियों में जाना रुक गया.
ऐसे ही न जाने कितने अनगिनत कार्य है जिसको इन्होनें निस्वार्थ भाव से किया है. अपने शहर और अपनी नदियों के लिए यह हमेशा से भावुक रहे हैं.
नदियों की दुर्दशा एवं उनके वर्तमान हालातों को देखकर अक्सर वह लोगों को कहा करते हैं:
सुर्ख सुबह शाम सुहानी चाहिए, जिंदगी भर सबको पानी चाहिए. कल जहां रुकते थे प्यासे काफिलें, आज उस दरिया को पानी चाहिए.
प्रमोद शर्मा सहारनपुर में ही पले-बढ़े, शिक्षित हुए, यहीं नौकरी की, यहीं रिटायर हुए और यहीं पर सेवा का कार्य भी कर रहे हैं. इनके शहर में बहने वाली पांवधोई नदी का महत्त्व इन के लिए काफी ज्यादा है. बचपन की ढेरों यादें इस नदी के साथ जुड़ी हुई हैं. पांवधोई नदी में दशहरा पर्व पर राम केवट संवाद का मंचन किया जाता था, बैसाखी पर्व पर लोग स्नान किया करते थे, बचपन में अपने मित्रों के साथ प्रमोद जी यहां अक्सर आया करते थे, घंटों वह इसमें नहाते थे मगर आज स्थिति ऐसी बिल्कुल नहीं रही, नदी गंदे नाले के रूप में तब्दील हो गई है. देशभर में पर्यावरण संरक्षण को लेकर कार्य करने वाले डॉ प्रमोद शर्मा के लिए यह कितना दुखदाई एहसास होगा कि उनके शहर की ही नदी आज इस मुकाम पर पहुंच गई है. इस नदी को फिर से अपने पुराने रूप में लाने के लिए प्रशासन के साथ-साथ डॉ प्रमोद शर्मा और साथ ही दूसरे कईं सामाजिक सरोकार में भूमिका निभाने वाले लोगों ने बहुत सहयोग किया है. डॉ प्रमोद शर्मा हमेशा से इस नदी के पुनरुद्धार की कोशिशों में लगे रहे हैं. वह पांवधोई बचाओ समिति के उपसचिव हैं.

डॉ प्रमोद कुमार शर्मा का स्वप्न है कि पांवधोई नदी सहारनपुर नगर का मुख्य आकर्षण केंद्र बने. इसका जल न केवल स्नान हेतु बल्कि पीने योग्य भी बन सके. नदी में मछलियां अठखेलियां करती दिखाई दें. नगरवासियों सुबह-शाम नदी तट पर टहलने के लिए आयें और यहां बैठकर समय बिताना पसंद करें और यह सबके सहयोग से ही साकार हो सकता है.
पांवधोई नदी नगर के मध्य से होकर गुजरती है, अतः दोनों ओर सघन आवासीय क्षेत्र व वाणिज्यिक गतिविधियों का समयानुसार विकास हुआ और सभी क्षेत्रों में गंदगी, सीवर, दैनिक कचरा अदि इसमें गिराये जाने लगे. परिणामस्वरूप यह नदी अपनी पवित्रता खोकर एक गंदा नाला और कूड़े का ढेर बन कर रह गई है. मगर वर्ष 2010 के दौरान तत्कालीन जिलाधिकारी श्री आलोक कुमार के प्रयासों से इस नदी को फिर से उसके पुराने स्वरूप में लाया जा सका, परन्तु इस नदी का दुर्भाग्य है कि धीरे धीरे वह फिर से नाले में तब्दील हो चुकी है. बावजूद इसके डॉ शर्मा अभी तक निराश नहीं हुए. उन्हें उम्मीद है कि प्रशासनिक सहयोग के साथ-साथ लोगों में इसके संरक्षण की भावना को पैदा किया जाएगा, जिससे पांवधोई नदी का उद्धार किया जा सके.
धीरे-धीरे लोग थक कर बैठ जाते हैं, मगर समय के साथ साथ डॉ प्रमोद कुमार शर्मा और अधिक ऊर्जावान होते जा रहे हैं. सामाजिक कार्य में नॉट आउट पारी एवं पर्यावरण के लिए समर्पित यह शख्स आज हम सभी के लिए एक प्रेरणा बने हुए हैं.
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